गाँठ आजीवन हम पढ़ते रहते जाने कितने पाठ कभी खोलत | हिंदी कविता

"गाँठ आजीवन हम पढ़ते रहते जाने कितने पाठ कभी खोलते कभी बांधते अपने मन की गाँठ कभी गाँठ देती है दिल के रिश्तों को मजबूती कभी तोड़ देती है रिश्ते जब किशमत हो फूटी खुलती नहीं गाँठ भले ही जल जाती है रस्सी जीवन भर हम करते रहते इससे रस्साकस्सी कभी हमें यह खुशी बाँटती बेखुद कभी रुलाती कभी लगाते इसे गले हम कभी पीटते छाती ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 गाँठ

आजीवन  हम पढ़ते रहते
जाने कितने पाठ
कभी खोलते कभी बांधते
अपने मन की गाँठ

कभी गाँठ देती है दिल के
रिश्तों को मजबूती
कभी तोड़ देती है रिश्ते
जब किशमत हो फूटी

खुलती नहीं गाँठ भले ही
जल जाती है रस्सी
जीवन भर हम करते रहते
इससे रस्साकस्सी

कभी हमें यह खुशी बाँटती
बेखुद कभी रुलाती
कभी लगाते इसे गले हम
कभी पीटते छाती

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

गाँठ आजीवन हम पढ़ते रहते जाने कितने पाठ कभी खोलते कभी बांधते अपने मन की गाँठ कभी गाँठ देती है दिल के रिश्तों को मजबूती कभी तोड़ देती है रिश्ते जब किशमत हो फूटी खुलती नहीं गाँठ भले ही जल जाती है रस्सी जीवन भर हम करते रहते इससे रस्साकस्सी कभी हमें यह खुशी बाँटती बेखुद कभी रुलाती कभी लगाते इसे गले हम कभी पीटते छाती ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गाँठ

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