मैंने निरा झूठ को,
सच का लिबास पहना कर,
बाज़ार में उतारा,
और ज़ोर ज़ोर से,
चिल्लाकर सच बतलाया,
कि मैं झूठ बेच रहा हूं,
लोगों ने मुझे देखा,
सच का लिबास ओढ़े
उस झूठ को देखा,
और फिर खरीद लिया मुझसे,
सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को।
क्योंकि इस दुनियां में
सच का सच होना आवश्यक नहीं,
सच का सच दिखना अधिक आवश्यक है।
#चौबेजी
©Choubey_Jii
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