मैंने निरा झूठ को, सच का लिबास पहना कर, बाज़ार में | हिंदी कविता

"मैंने निरा झूठ को, सच का लिबास पहना कर, बाज़ार में उतारा, और ज़ोर ज़ोर से, चिल्लाकर सच बतलाया, कि मैं झूठ बेच रहा हूं, लोगों ने मुझे देखा, सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को देखा, और फिर खरीद लिया मुझसे, सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को। क्योंकि इस दुनियां में सच का सच होना आवश्यक नहीं, सच का सच दिखना अधिक आवश्यक है। #चौबेजी ©Choubey_Jii"

 मैंने निरा झूठ को,
सच का लिबास पहना कर,
बाज़ार में उतारा,
और ज़ोर ज़ोर से,
चिल्लाकर सच बतलाया,
कि मैं झूठ बेच रहा हूं,

लोगों ने मुझे देखा,
सच का लिबास ओढ़े
उस झूठ को देखा,
और फिर खरीद लिया मुझसे,
सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को।

क्योंकि इस दुनियां में
सच का सच होना आवश्यक नहीं,
सच का सच दिखना अधिक आवश्यक है।

#चौबेजी

©Choubey_Jii

मैंने निरा झूठ को, सच का लिबास पहना कर, बाज़ार में उतारा, और ज़ोर ज़ोर से, चिल्लाकर सच बतलाया, कि मैं झूठ बेच रहा हूं, लोगों ने मुझे देखा, सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को देखा, और फिर खरीद लिया मुझसे, सच का लिबास ओढ़े उस झूठ को। क्योंकि इस दुनियां में सच का सच होना आवश्यक नहीं, सच का सच दिखना अधिक आवश्यक है। #चौबेजी ©Choubey_Jii

#चौबेजी #nojohindi #Nojoto #poem

#FindingOneself

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