शाम गुजर गयी फिर ये इंतज़ार कैसा उसे एहसास तक नही

"शाम गुजर गयी फिर ये इंतज़ार कैसा उसे एहसास तक नहीं तो ये प्यार कैसा उन्हें चाहत तक नहीं हमारे दिदार का फिर बेवजह का इज़हार कैसा।।"

 शाम गुजर गयी फिर ये इंतज़ार कैसा 
उसे एहसास तक नहीं तो ये प्यार कैसा 
उन्हें चाहत तक नहीं हमारे दिदार का
फिर बेवजह का इज़हार कैसा।।

शाम गुजर गयी फिर ये इंतज़ार कैसा उसे एहसास तक नहीं तो ये प्यार कैसा उन्हें चाहत तक नहीं हमारे दिदार का फिर बेवजह का इज़हार कैसा।।

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