सौंधी सौंधी रातों में, चाँद की छांव में,दरिया सा गुनगुनाऊंगा,
तुम आँखों के ज़रिये बात करना,मैं तुम में समा जाऊंगा !
पवन का स्पर्श हुआ बादलों को,तो अंबर भी चिल्लाएगा,
दिल का हमदर्द,बारिश में फिर भीगता हुआ आएगा।
मेरी आँखों के जादू से, फिर चाँदनी भी जगमगाएगी,
बसंत की सुगंध सारे पर्यावरण में समा जाएगी !
तुम और मैं इस जहां में,खुशियों की बरसात आएगी,
रिमझिम सी बरसात,मौन का संगीत गुनगुनाएगी !
चाँद के रंग से रंगी हुई रातों में,तुम ख़्वाब बन जाओगे,
फिर आँखों से बात होगी,तुम भी मुझमें समा जाओगे !
सौंधी सौंधी रातों में,चांद की छांव में,कहीं खो जाएंगे,
दिल के साथी दिल की बात और प्यार के गीत गुनगुनाएँगे।
©Thakur Vivek Krishna
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