जो खेलते हो हर आबरू से,
क्या अस्तित्व अपना भी याद नही।
जन्मे थे तुम भी
एक कोख से ही,
वो कोख भी एक स्त्री की थी,
क्या ये भी तुम्हे याद नही।
जब बोल भी नही पाते थे तुम,
तो एक ममता ने संभाला था तुम्हें,
क्या चीख़
किसी घर की अमानत की,
है सिर्फ तमन्ना तुम्हारी।
आनी चाहिए शर्म तुम्हे ,
जो गलती से ही सही तुम इंसान जो बने,
हैवान हो तुम जिसे जीने का भी हक़ नहीं,
है जान किसी और की भी जान ही आखिर,
है तुम्हे याद भी , या ये तुम्हे याद नही।