करो मत फिक्र तुमको कौन कितना क्या समझते हैं।।
यहांँ बस लोग जितना हैं तुम्हें उतना समझते हैं।
बहुत अच्छे बनो मत तुम फरेबी इस जमाने में,
यहांँ सच्चे को साहब राह का कांँटा समझते हैं।
बगावत भूल बैठे हैं लगे सब चापलूसी में,
यहांँ पर जी हुजूरी को सभी अच्छा समझते हैं।
हिमालय से निकलकर बह रही जो आज तक यूंँ ही,
विरह में रो रहा पर्वत जिसे नदिया समझते हैं।
#मौर्यवंशी_मनीष_मन #ग़ज़ल_मन