हम नहीं डरते तिमिर के ज़ोर से ,
अन्ततः हम जा मिलेंगे भोर से ।
आपकी निष्ठा अभी संदिग्ध है ,
सच बताएं आप हैं किस ओर से ।
हम चले आते हैं खिंचकर आप तक ,
हम बंधे हैं प्रीति वाली डोर से ।
लूटने को आ गए डाकू कई ,
मुक्ति हमको मिल गई जब चोर से ।
वो हमें कब तक करेंगे अनसुना ,
आइये हम और चीखें ज़ोर से ।
मन के कोलाहल से बचने के लिए ,
हम मिले हैं दुनिया भर के शोर से ।
शम्स कुछ भी तो नहीं बोले मगर ,
कह दिया सब कुछ नयन की कोर से ।
- डॉ. दिनेश त्रिपाठी' शम्स'
Dr dinesh tripathi