कबो पगड़ी कबो चद्दर कबो पोछा नजर आइल। हर एक रूप मे

"कबो पगड़ी कबो चद्दर कबो पोछा नजर आइल। हर एक रूप में हमरा हमर गमछा नजर आइल।। जब से चलल बा बेमारी किरउना नाम के। मुख लंगोट के बदला हमर गमछा नजर आइल।। सोमेश त्रिवेदी😁😁 *गमछा* challenge accepted bro 😁😁"

 कबो पगड़ी कबो चद्दर कबो पोछा नजर आइल।
हर एक रूप में हमरा हमर गमछा नजर आइल।।
जब से चलल बा बेमारी किरउना नाम के।
मुख लंगोट के बदला हमर गमछा नजर आइल।।

सोमेश त्रिवेदी😁😁

*गमछा* challenge accepted bro 😁😁

कबो पगड़ी कबो चद्दर कबो पोछा नजर आइल। हर एक रूप में हमरा हमर गमछा नजर आइल।। जब से चलल बा बेमारी किरउना नाम के। मुख लंगोट के बदला हमर गमछा नजर आइल।। सोमेश त्रिवेदी😁😁 *गमछा* challenge accepted bro 😁😁

Neelendra Shukla भइया का एक शेर है:-

कभी बारिश, कभी नौका, कभी सावन नज़र आया ।
तुम्हारे रूप में मुझको मेरा बचपन नज़र आया ।।

इसी को पढ़ कर मैंने प्रयास किया और ये निचली पंक्तियां बनीं 😁😁

भइया क्षमा करें 😆😆😆🙏🙏

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