बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़,
महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़,
सीधे रास्ते में भी चलते-चलते कदम बहक जाते है कई रोज़,
जब याद आता है माथे का बोसा लिया था उसने एक रोज़।
- काज़ी मुईज़ हाशमी
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Collaborating with YourQuote Baba
बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़,
महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़,