आसान नहीं होता. रोज़ टूट कर जुड़ना जैसे तैसे जुड़ | हिंदी Shayari

"आसान नहीं होता. रोज़ टूट कर जुड़ना जैसे तैसे जुड़ तो जाती हूं मैं पर इस टूटने जुड़ने में जो मलबा बचता है उसका ढ़ेर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है काश कहीं ऐसे मलबे को गाड़ कर उस पर लिखा जा सकता- Complete... no scope! ©Nitish Chauhan"

 आसान नहीं होता. रोज़ टूट कर जुड़ना जैसे तैसे जुड़ तो जाती हूं मैं
 पर इस टूटने जुड़ने में जो मलबा बचता है उसका ढ़ेर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है 
काश कहीं ऐसे मलबे को गाड़ कर उस पर लिखा जा सकता- Complete... no scope!

©Nitish Chauhan

आसान नहीं होता. रोज़ टूट कर जुड़ना जैसे तैसे जुड़ तो जाती हूं मैं पर इस टूटने जुड़ने में जो मलबा बचता है उसका ढ़ेर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है काश कहीं ऐसे मलबे को गाड़ कर उस पर लिखा जा सकता- Complete... no scope! ©Nitish Chauhan

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