उम्र ढल जाएगी, हर शाम डूबते सूरज को देख
तेरा इंतेज़ार करेंगे
लौट आओ तो अच्छा है,
वरना यूँ ही ज़िन्दगी तेरे नाम करेंगे ।
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Intezaar by Nishant Sidar
तुम थी कभी एक ख्वाब सी,
जिसे देखता था मैं हर घड़ी
न अब वो ख्वाब रहा ना तुम रही,
बस जी रहे हैं, बगैर ज़िन्दगी ।
सुना किसी और से मैंने,
कि ज़िन्दगी हसीन हो गयी है तुम्हारी