जितना डराती थी बचपन में ये रात,
उतना सुक़ून देती है आज ये रात।
दिन के उजाले में आंखे चोंधियाँ जाती हैं,
अंधेरे में लोगों के चेहरे से नकाब उतारती है ये रात।
सुबह होते ही घिर जाता हूँ मतलबी लोगों से,
मेरे अकेलेपन का हमसफ़र बनती है ये रात।
हमेशा एक नई सच्चाई से रूबरू कराती है ये रात,
पता नहीं कहाँ से आती है,और कहाँ को जाती है ये रात...
©#KuMaR YoGesH