सुनो हरसिंगार
है एक सवाल
वैसी क्यों हो तुम
जैसे और सब नही
जैसे हैं ये सब
तुम वैसी क्यों नहीं
और भी तो फूल है
खेलते है खिलते है
डालियों पर टिकते है
जब तक तोड़ें नही जाते
डाली छोड़ते नही
पर तुम तो हो बिलकुल अलग
खिल तो जाती हो
पर क्यों तुम रुक नही पाती
खुद ही डाली छोड़ जाती हो
क्या है ऐसा की
सब मोह में पड़े
और तुम मोह से परे
हरसिंगार क्यों हो तुम ऐसी ??
©मिहिर
हरसिंगार