कि काश मै एक पंछी होती,
उन्मुक्त सी उड़ती गगन में,
ऊंचाइयों से नीचे गिरने के डर के खौफ को हराती बेखौफ पंछी जो तेज़ गति से हार न मानता,
वो पंछी जो तेज़ आंधियों को चीरता हुआ,
एक पंछी जो बाज़ है ......पर फ़िर सोचते हुए अचानक से मां की आवाज़ सुनाई दी शिखा!
आज स्कूल नहीं जाना क्या 😊
सोचती हुई अरे मै तो दिवा स्वप्न में थी,
पर एक दिन सारे डर से बेख़ौफ़ जरूर बनूंगी मै फिर से दिवा स्वप्न में डूब गई।।
©Shikha Yadav