कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है, हर बार खोला जाए,ज़रूरी तो

"कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है, हर बार खोला जाए,ज़रूरी तो नहीं। दो तकिये पैरो में पड़े है, हर बार सिरहाने रहे, ज़रूरी तो नहीं। दूसरी भाषा मे टीवी चल रहा है, कुछ समझ मे आए,ज़रूरी तो नहीं। एक चींटी, एक-दो मच्छर-मक्खी भी हैं, इन्हें मारने की सोचु,ज़रूरी तो नहीं। देख रहा हूँ, सबके हाथ-पैर हैं, मैं ही काम करूँ,ज़रुरी तो नहीं। ये किसने करवट बदलने के लिए कहा, रविवार को इतना भी करूँ,कोई ज़रूरी नहीं। भूमित"

 कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है,
हर बार खोला जाए,ज़रूरी तो नहीं।
दो तकिये पैरो में पड़े है,
हर बार सिरहाने रहे, ज़रूरी तो नहीं।
दूसरी भाषा मे टीवी चल रहा है,
कुछ समझ मे आए,ज़रूरी तो नहीं।
एक चींटी, एक-दो मच्छर-मक्खी भी हैं,
इन्हें मारने की सोचु,ज़रूरी तो नहीं।
देख रहा हूँ, सबके हाथ-पैर हैं,
मैं ही काम करूँ,ज़रुरी तो नहीं।
ये किसने करवट बदलने के लिए कहा,
रविवार को इतना भी करूँ,कोई ज़रूरी नहीं।

                                                  भूमित

कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है, हर बार खोला जाए,ज़रूरी तो नहीं। दो तकिये पैरो में पड़े है, हर बार सिरहाने रहे, ज़रूरी तो नहीं। दूसरी भाषा मे टीवी चल रहा है, कुछ समझ मे आए,ज़रूरी तो नहीं। एक चींटी, एक-दो मच्छर-मक्खी भी हैं, इन्हें मारने की सोचु,ज़रूरी तो नहीं। देख रहा हूँ, सबके हाथ-पैर हैं, मैं ही काम करूँ,ज़रुरी तो नहीं। ये किसने करवट बदलने के लिए कहा, रविवार को इतना भी करूँ,कोई ज़रूरी नहीं। भूमित

#इतवार_का_दिन

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