यूं रफ़ाकतो के किस्से भी मुक्कमल थे
रात पर यादों की नैया में बैठे जो गुजरे
मैंने उसके इक इक हिस्से को निहारा
हाथ ठहरे से रहे उसके बदन से जो गुजरे
रात हमनें देखा इक तकिये पर सिर रखकर
अंगुलियों के नक्श ना ठहरे लवों से जो गुजरे
बरामद हुआ मेरा जिस्म उसकी खुशबू संग
ख्वाब हकीकत में भी हसीन गुजरे अब जो गुजरे
इक उम्र कैद की गुजारनी हो मुबारक मुझे
उम्र पूरी सी रही लम्हों में संग उसके जो गुजरे
©Rahul Yadav
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