"ram lala ayodhya mandir लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।। सर्व प्रथम आवाह्न दूं, सीता जगदम्बा माई को। दूजा आव्हान आञ्जनेय श्री,पवनपुत्र प्रभुताई को।। परणाम तीसरा अर्पित है,सौमित्र तेरी ठकुराई को। ब्रम्हांड समूचा नमन करे,दसरथ नंदन रघुराई को।। कविता का प्रथम बंध…साहस करता हूं… संभालिएगा लिख रहा हूं धन्य ध्येय,धर्म की ध्वजा का आज। सरजू तट सुरम्य धन्य, धाम लिख रहा हूं मैं।। लिख रहा हूं आत्मा मै, सत्य की सनातन की। हां युगों के इंतज़ार पर,विराम लिख रहा हूं मैं।। लिख रहा हूं मैं, युगों युगों की बेड़ियों का दंश। बलिदानियों के दान को ,प्रणाम लिख रहा हूं मैं।। दशकंठ रावणो का काल,कौशल्या दशरथों का लाल। आज वाल्मीकि तुलसियों का,राम लिख रहा हूं मैं।। एक नहीं दो नहीं पांच सौ बरस तलक। केसरी परिधान पर कलंक हमने ढोए हैं।। ढोए हैं शवों के ढेर,और ढेर साधुओं के। संतों के सोडित से सिंहासन भिगोए हैं।। दी मुखाग्नि हमने है,कोठारी बंधुओं को और। सरजू के सिरहाने, जाने कितने शीश बोए हैं।। शोक ये नहीं कि,हमने कितने शीश दे दिए। या कि कितनी आंखों ने,कितने अश्रु रोए हैं…? न कि ये कि मिट गए, कितने राम के भगत, निष्प्राण देह में भी कितने,राम को संजोए हैं। शोक तो ये भी नहीं सहे जो गोलियों के घाव, या कि अपने कंधो पे, जो अपनी लाश ढोए हैं। इस बात का मलाल भी नहीं ज़हन में एक अंश। सरजुओं के आंचलों को रक्त से भिगोए हैं।। दर्द ये कि रामलला,मेरे आपके प्रभु। पांच सौ बरस तलक,तिरपाल तले सोए हैं।। चलो सभी को ले चलूं,मैं राम की नगरिया में। आओ मेरे साथ भगवान पूजने चलें।। पूजने चलें चलो प्रतीक्षा शताब्दियों की। तैंतीस कोटि देवों का,गुमान पूजने चलें।। आओ मेरे हांथ में रखो सभी हथेलियां। एक साथ विश्व का प्रधान पूजने चलें।। पूजने चलें चलो बलिदानियों की राख और। पांच शतको बाद स्वाभिमान पूजने चलें।। अरे उठो जटायु गिद्धों, श्री राम के धाम चलो रे। जिस नाम के पत्थर जल पैरें, उस नाम के धाम चलो रे।। जिंहके खातिर शिव बनि जन्मे, मारुति उस ग्राम चलो रे। जगदम्बा बनी वधु जिस रज,अजोध्या धाम चलो रे।। काल के कपाल पे कराल काव्य लिख दिया है। बाइस जनवरी की तिथि इतिहासों में गढ़ गई।। दंडवत प्रणाम है सनातन सिपाहियों को। आप के प्रयासों में सफलता उमड़ गई।। कितनी बार सरजूओं को रक्त से किया है लाल। भेंट कितनी क्रांति की भवानियों को चढ़ गई।। आगमन हुआ जो मेरे राम का अयोध्या में। सौ करोड़ हिंदुओं की जिंदगियां बढ़ गई।। कैसा है मेरा राम…? काले काले घोर घनघोर घुंघराले केश, सिंह से कबंध हस्ति सूंड सी भुजाए हैं।। भृकुटि वक्रता तले दिव्य दृग युगल का तेज, भाल मध्य सूर्य वंश चिन्ह को सजाए हैं। कोमल कपोल गात अग्निकोष से अधर। ग्रीवा पे अगणित सारंग उतर आए हैं।। दृष्टि भर के देखा जो मेरे राम राघव को। रति के पति कामदेव भी लजाए हैं।। तारों की तरंगिका में चंद्र के सदृश है राम। सर्व गृह नक्षत्रों में सूर्य का स्वरूप है।। लोक परलोक का, त्रिलोक का नियंता है। चौरासी लाख योनियों,नरेशों का भूप है।। जल है समीर है मृदा है अगन है राम। सागर है मरुस्थल है गिरि है राम कूप है।। बांध लो अगर तो जूठे बेर में बंधा है राम। यूं तो कल्पना से दूर वो विराट विश्व रूप है।। कौन है राम…? देवों के देव महादेवो का इष्ट है वो। दुष्ट दानवों पे वो अकेला विराम है।। सत्य है सटीक है स्वभाव से सरल है राम। शांति है सुमार्ग है समर्थ है सकाम है।। शून्य से हिया के राम, शबरी के सिया के राम। असीम है अनंत है अनूप है अनाम है।। हृदय ह्रदय निवासी राम, सरजू कूल वासी राम। भव सागर से तारण का उपाय मात्र राम है।। विष्णु के अवतारी हैं, कोदंड तीर धारी हैं वो। संतन्ह हितकारी हैं,वो शेष के लिटैया हैं।। दशरथ के नंदन हैं,वो दुष्ट निकंदन हैं। निषादों के मीत हैं,वो भरत जी के भईया हैं।। विश्व से विराट हैं वो,अखिल सम्राट हैं वो। मेरे और आपके, जहाज के खिवैया हैं।। पालक हैं पोषक हैं, इस श्रृष्टि के नियंता हैं वो। चौरासी लाख योनियों के, पेट के भरैय्या हैं।। राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते थे जो। जाकर के उन्हें कोई बरनौल दे के आइए।। महसूस कीजिए ज़रा उस जले ज़हन की दाह। शीत लेप देके आप दाह को बुझाइए।। फिर भी जो सबूत मांगे,राम के वजूद का तो। नाम के निमित्त सेतु बंध लेके जाइए।। हो न फिर भरोसा जो उसको मेरे राघव पर। तो पागल है आगरे में भरती करवाइए।। तर्क तोलिएगा आप तथ्य को तराशिएगा। सूर्यवंशी शान का संकल्प मापिएगा आप।। थाह लीजिएगा आप रघुकुल की रीति का। रघुवंशियों की आन का विकल्प मापिएगा आप।। तपस्या की त्याग की बलिदान की पराकाष्ठा क्या हो सकती है…? तप में तपे हैं जो पांच सौ बरस तलक। मंदिर विध्वंस में ही पद्त्रान त्यागे थे।। युद्ध में कटे मरे बाबरी विध्वंस में। जीव से विरक्त हुए न कृपाण त्यागे थे।। त्याग दी थीं छतरियां सूर्यवंशी क्षत्रपों ने। पगड़ियों के साथ में वो स्वाभिमान त्यागे थे।। भीषड़ संहार में हजारों शीश कट गए। सौ सहस्त्र क्षत्रियों ने लड़ के प्राण त्यागे थे।। दिन आज आया है प्रसन्नता का हर्ष का। जटायु के कटे हुए परों को भी गुमान है।। आज मुक्ति मिल गई,अशोक सिंघलों को है। उमा रमा का हो गया सार्थक बलिदान है।। मिल गया है मोक्ष आज महात्मा कल्याण को। जिसकी बदौलत आज स्वर्णिम विहान है।। आन बान शान जान मान खानदान प्राण। राम का निकेतन ये हमारा स्वाभिमान है।। स्वाभिमान वो जिसे सींचा है सोडित से। स्वाभिमान वो जिसमे पीढ़ियां गलाई हैं।। स्वाभिमान वो जहां गोलियों से छिद गए। बंदूकों के आगे अपनी छातियां बढ़ाई हैं।। स्वाभिमान वो जिसकी साक्षी अयोध्या है। स्वाभिमान जिसकी गवाह सरजू माई है।। स्वाभिमान वो जब जरूरत पड़ी है। शीश देके कंधो पे अर्थियां उठाई है। सदियों सदियां बीत गईं तब रात उजाली आई है। छट गईं अमावस की रातें पूनम की लाली छाई है।। अवसादों का अंत हुआ सब रामराज है मंगल है। पांच शतक के बाद हमारे घर दीवाली आई है।। कितने ही बाबर आ जाएं अवतंश नहीं मिटने वाला। इच्छवाकू और भागीरथ का ये अंश नहीं मिटने वाला।। अरे मिट जाएंगी पुस्तें भी अस्तित्व तेरा मिट जाएगा। कलयुगी राहुओ सूर्य देव का "वंश" नहीं मिटने वाला।। आज विराजे हैं भगवन,श्री कोसलपुर रजधानी में। पावन हो गईं शिलाएं सब,पत्थर तैरें फिर पानी में।। शीश झुकाए "वंश" खड़ा, अंगदों आज के हनुमानों। कांड आठवां जोड़ दिया है, तुमने राम कहानी में।। #कविवंश…✍️ @followers @highlight कविवंश विलक्षण DK Thakur Dr. Kumar Vishwas Ram Bhadawar Manoj Muntashir ©Vansh Thakur "
ram lala ayodhya mandir लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।। सर्व प्रथम आवाह्न दूं, सीता जगदम्बा माई को। दूजा आव्हान आञ्जनेय श्री,पवनपुत्र प्रभुताई को।। परणाम तीसरा अर्पित है,सौमित्र तेरी ठकुराई को। ब्रम्हांड समूचा नमन करे,दसरथ नंदन रघुराई को।। कविता का प्रथम बंध…साहस करता हूं… संभालिएगा लिख रहा हूं धन्य ध्येय,धर्म की ध्वजा का आज। सरजू तट सुरम्य धन्य, धाम लिख रहा हूं मैं।। लिख रहा हूं आत्मा मै, सत्य की सनातन की। हां युगों के इंतज़ार पर,विराम लिख रहा हूं मैं।। लिख रहा हूं मैं, युगों युगों की बेड़ियों का दंश। बलिदानियों के दान को ,प्रणाम लिख रहा हूं मैं।। दशकंठ रावणो का काल,कौशल्या दशरथों का लाल। आज वाल्मीकि तुलसियों का,राम लिख रहा हूं मैं।। एक नहीं दो नहीं पांच सौ बरस तलक। केसरी परिधान पर कलंक हमने ढोए हैं।। ढोए हैं शवों के ढेर,और ढेर साधुओं के। संतों के सोडित से सिंहासन भिगोए हैं।। दी मुखाग्नि हमने है,कोठारी बंधुओं को और। सरजू के सिरहाने, जाने कितने शीश बोए हैं।। शोक ये नहीं कि,हमने कितने शीश दे दिए। या कि कितनी आंखों ने,कितने अश्रु रोए हैं…? न कि ये कि मिट गए, कितने राम के भगत, निष्प्राण देह में भी कितने,राम को संजोए हैं। शोक तो ये भी नहीं सहे जो गोलियों के घाव, या कि अपने कंधो पे, जो अपनी लाश ढोए हैं। इस बात का मलाल भी नहीं ज़हन में एक अंश। सरजुओं के आंचलों को रक्त से भिगोए हैं।। दर्द ये कि रामलला,मेरे आपके प्रभु। पांच सौ बरस तलक,तिरपाल तले सोए हैं।। चलो सभी को ले चलूं,मैं राम की नगरिया में। आओ मेरे साथ भगवान पूजने चलें।। पूजने चलें चलो प्रतीक्षा शताब्दियों की। तैंतीस कोटि देवों का,गुमान पूजने चलें।। आओ मेरे हांथ में रखो सभी हथेलियां। एक साथ विश्व का प्रधान पूजने चलें।। पूजने चलें चलो बलिदानियों की राख और। पांच शतको बाद स्वाभिमान पूजने चलें।। अरे उठो जटायु गिद्धों, श्री राम के धाम चलो रे। जिस नाम के पत्थर जल पैरें, उस नाम के धाम चलो रे।। जिंहके खातिर शिव बनि जन्मे, मारुति उस ग्राम चलो रे। जगदम्बा बनी वधु जिस रज,अजोध्या धाम चलो रे।। काल के कपाल पे कराल काव्य लिख दिया है। बाइस जनवरी की तिथि इतिहासों में गढ़ गई।। दंडवत प्रणाम है सनातन सिपाहियों को। आप के प्रयासों में सफलता उमड़ गई।। कितनी बार सरजूओं को रक्त से किया है लाल। भेंट कितनी क्रांति की भवानियों को चढ़ गई।। आगमन हुआ जो मेरे राम का अयोध्या में। सौ करोड़ हिंदुओं की जिंदगियां बढ़ गई।। कैसा है मेरा राम…? काले काले घोर घनघोर घुंघराले केश, सिंह से कबंध हस्ति सूंड सी भुजाए हैं।। भृकुटि वक्रता तले दिव्य दृग युगल का तेज, भाल मध्य सूर्य वंश चिन्ह को सजाए हैं। कोमल कपोल गात अग्निकोष से अधर। ग्रीवा पे अगणित सारंग उतर आए हैं।। दृष्टि भर के देखा जो मेरे राम राघव को। रति के पति कामदेव भी लजाए हैं।। तारों की तरंगिका में चंद्र के सदृश है राम। सर्व गृह नक्षत्रों में सूर्य का स्वरूप है।। लोक परलोक का, त्रिलोक का नियंता है। चौरासी लाख योनियों,नरेशों का भूप है।। जल है समीर है मृदा है अगन है राम। सागर है मरुस्थल है गिरि है राम कूप है।। बांध लो अगर तो जूठे बेर में बंधा है राम। यूं तो कल्पना से दूर वो विराट विश्व रूप है।। कौन है राम…? देवों के देव महादेवो का इष्ट है वो। दुष्ट दानवों पे वो अकेला विराम है।। सत्य है सटीक है स्वभाव से सरल है राम। शांति है सुमार्ग है समर्थ है सकाम है।। शून्य से हिया के राम, शबरी के सिया के राम। असीम है अनंत है अनूप है अनाम है।। हृदय ह्रदय निवासी राम, सरजू कूल वासी राम। भव सागर से तारण का उपाय मात्र राम है।। विष्णु के अवतारी हैं, कोदंड तीर धारी हैं वो। संतन्ह हितकारी हैं,वो शेष के लिटैया हैं।। दशरथ के नंदन हैं,वो दुष्ट निकंदन हैं। निषादों के मीत हैं,वो भरत जी के भईया हैं।। विश्व से विराट हैं वो,अखिल सम्राट हैं वो। मेरे और आपके, जहाज के खिवैया हैं।। पालक हैं पोषक हैं, इस श्रृष्टि के नियंता हैं वो। चौरासी लाख योनियों के, पेट के भरैय्या हैं।। राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते थे जो। जाकर के उन्हें कोई बरनौल दे के आइए।। महसूस कीजिए ज़रा उस जले ज़हन की दाह। शीत लेप देके आप दाह को बुझाइए।। फिर भी जो सबूत मांगे,राम के वजूद का तो। नाम के निमित्त सेतु बंध लेके जाइए।। हो न फिर भरोसा जो उसको मेरे राघव पर। तो पागल है आगरे में भरती करवाइए।। तर्क तोलिएगा आप तथ्य को तराशिएगा। सूर्यवंशी शान का संकल्प मापिएगा आप।। थाह लीजिएगा आप रघुकुल की रीति का। रघुवंशियों की आन का विकल्प मापिएगा आप।। तपस्या की त्याग की बलिदान की पराकाष्ठा क्या हो सकती है…? तप में तपे हैं जो पांच सौ बरस तलक। मंदिर विध्वंस में ही पद्त्रान त्यागे थे।। युद्ध में कटे मरे बाबरी विध्वंस में। जीव से विरक्त हुए न कृपाण त्यागे थे।। त्याग दी थीं छतरियां सूर्यवंशी क्षत्रपों ने। पगड़ियों के साथ में वो स्वाभिमान त्यागे थे।। भीषड़ संहार में हजारों शीश कट गए। सौ सहस्त्र क्षत्रियों ने लड़ के प्राण त्यागे थे।। दिन आज आया है प्रसन्नता का हर्ष का। जटायु के कटे हुए परों को भी गुमान है।। आज मुक्ति मिल गई,अशोक सिंघलों को है। उमा रमा का हो गया सार्थक बलिदान है।। मिल गया है मोक्ष आज महात्मा कल्याण को। जिसकी बदौलत आज स्वर्णिम विहान है।। आन बान शान जान मान खानदान प्राण। राम का निकेतन ये हमारा स्वाभिमान है।। स्वाभिमान वो जिसे सींचा है सोडित से। स्वाभिमान वो जिसमे पीढ़ियां गलाई हैं।। स्वाभिमान वो जहां गोलियों से छिद गए। बंदूकों के आगे अपनी छातियां बढ़ाई हैं।। स्वाभिमान वो जिसकी साक्षी अयोध्या है। स्वाभिमान जिसकी गवाह सरजू माई है।। स्वाभिमान वो जब जरूरत पड़ी है। शीश देके कंधो पे अर्थियां उठाई है। सदियों सदियां बीत गईं तब रात उजाली आई है। छट गईं अमावस की रातें पूनम की लाली छाई है।। अवसादों का अंत हुआ सब रामराज है मंगल है। पांच शतक के बाद हमारे घर दीवाली आई है।। कितने ही बाबर आ जाएं अवतंश नहीं मिटने वाला। इच्छवाकू और भागीरथ का ये अंश नहीं मिटने वाला।। अरे मिट जाएंगी पुस्तें भी अस्तित्व तेरा मिट जाएगा। कलयुगी राहुओ सूर्य देव का "वंश" नहीं मिटने वाला।। आज विराजे हैं भगवन,श्री कोसलपुर रजधानी में। पावन हो गईं शिलाएं सब,पत्थर तैरें फिर पानी में।। शीश झुकाए "वंश" खड़ा, अंगदों आज के हनुमानों। कांड आठवां जोड़ दिया है, तुमने राम कहानी में।। #कविवंश…✍️ @followers @highlight कविवंश विलक्षण DK Thakur Dr. Kumar Vishwas Ram Bhadawar Manoj Muntashir ©Vansh Thakur
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