कलियुग का प्रकोप
दूध की नदियां बहती थीं कभी
अब खून की नदियां बहती हैं
प्रेम भाव था भाईयों में कभी
अब चाकू-छुरियां चलती हैं
धन संपदा जमीन नारी
जब हुआ करती थीं परदे में
अब खुलकर है आ गई सारी
कसर न छोड़ी झगड़े में
कलियुग का है प्रकोप सारा
इस ने लिया है लपेटे में
मनुष्य तो है बस माध्यम बेचारा
घसीटा उसको अंधेरे में
तेरा – मेरा की लड़ाई कभी
खत्म न होगी जमाने में
ईश्वर भी सोचता होगा कभी
क्या गलती हुई इंसां बनाने में
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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कलियुग का प्रकोप
दूध की नदियां बहती थीं कभी
अब खून की नदियां बहती हैं
प्रेम भाव था भाईयों में कभी
अब चाकू-छुरियां चलती हैं