कलियुग का प्रकोप दूध की नदियां बहती थीं कभी अब खू | हिंदी Poetry Video

"कलियुग का प्रकोप दूध की नदियां बहती थीं कभी अब खून की नदियां बहती हैं प्रेम भाव था भाईयों में कभी अब चाकू-छुरियां चलती हैं धन संपदा जमीन नारी जब हुआ करती थीं परदे में अब खुलकर है आ गई सारी कसर न छोड़ी झगड़े में कलियुग का है प्रकोप सारा इस ने लिया है लपेटे में मनुष्य तो है बस माध्यम बेचारा घसीटा उसको अंधेरे में तेरा – मेरा की लड़ाई कभी खत्म न होगी जमाने में ईश्वर भी सोचता होगा कभी क्या गलती हुई इंसां बनाने में …………………………………………………… देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit "

कलियुग का प्रकोप दूध की नदियां बहती थीं कभी अब खून की नदियां बहती हैं प्रेम भाव था भाईयों में कभी अब चाकू-छुरियां चलती हैं धन संपदा जमीन नारी जब हुआ करती थीं परदे में अब खुलकर है आ गई सारी कसर न छोड़ी झगड़े में कलियुग का है प्रकोप सारा इस ने लिया है लपेटे में मनुष्य तो है बस माध्यम बेचारा घसीटा उसको अंधेरे में तेरा – मेरा की लड़ाई कभी खत्म न होगी जमाने में ईश्वर भी सोचता होगा कभी क्या गलती हुई इंसां बनाने में …………………………………………………… देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

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कलियुग का प्रकोप

दूध की नदियां बहती थीं कभी
अब खून की नदियां बहती हैं
प्रेम भाव था भाईयों में कभी
अब चाकू-छुरियां चलती हैं

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