जिंदगी प्रतिक्षण ढलती जाती है जैसे मुट्ठी से रेत न | हिंदी विचार

"जिंदगी प्रतिक्षण ढलती जाती है जैसे मुट्ठी से रेत निकल जाती है सुख हो या दुख सदैव हंसते रहना ठोकरें खाकर ही जिंदगी सफल हो जाती है ©jitendra kumar"

 जिंदगी प्रतिक्षण ढलती जाती है जैसे मुट्ठी से रेत निकल जाती है सुख हो या दुख सदैव हंसते रहना ठोकरें खाकर ही जिंदगी सफल हो जाती है

©jitendra kumar

जिंदगी प्रतिक्षण ढलती जाती है जैसे मुट्ठी से रेत निकल जाती है सुख हो या दुख सदैव हंसते रहना ठोकरें खाकर ही जिंदगी सफल हो जाती है ©jitendra kumar

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