मुझे मेरे दोस्त ना बहुत याद आते हैं
समय के साथ खेल तो बदले
और उनको खेलने वाले जो नहीं बदल पाते है वो ही
असल दोस्त कहलाते हैं
पकड़म पकड़ाई से कबड्डी, कबड्डी से वॉलीबाल सब खेल जिनके साथ मैंने खेला है
उनके साथ स्कूल जल्दी आना और खेलने को देर तक रुकने की जो यादें है वही मेरी दोस्ती मेला है
स्कूल खत्म हुआ कॉलेज शुरू काफी छूटे और कुछ हमारे ही बने गुरू
कोई कहीं अव्वल आया किसी ने कहीं झंडे गाड़े
तो कोई कहीं हल्का सा चूका और हल्का सा हारे
आज भी मेरी उनसब से कभी कभी बात हो जाती है
कोई fb पे मिल जाता और अपने वालों से whatsapp पे चैट हो जाती
ज़िन्दगी बढ़ती रही नए दोस्त देती रही
और हमने अब पुरानो के साथ साथ नए भी संभालना सीख लिया है
हक़ है उनसब का मुझपर है और मेरा उनपर इसलिए ज़रूरत पर
किसी ने भी किसी पर भी हक़ से चीख़ दिया है
दोस्ती transparent सी होनी चाहिए जो हो सामने आना चाहिए
बुरा लगा तो लगा बुरा बोला तो बोला
और दोस्ती में कुछ भी चलता नहीं है उसे चलना पड़ता है
खुद ब खुद कुछ ठीक नहीं होता इसलिए रूठे दोस्त को मनाना पड़ता है।
मुझे मेरे दोस्त ना बहुत याद आते हैं
समय के साथ खेल तो बदले
और उनको खेलने वाले जो नहीं बदल पाते है वो ही
असल दोस्त कहलाते हैं
पकड़म पकड़ाई से कबड्डी, कबड्डी से वॉलीबाल सब खेल जिनके साथ मैंने खेला है
उनके साथ स्कूल जल्दी आना और खेलने को देर तक रुकने की जो यादें है वही मेरी दोस्ती मेला है
स्कूल खत्म हुआ कॉलेज शुरू काफी छूटे और कुछ हमारे ही बने गुरू
कोई कहीं अव्वल आया किसी ने कहीं झंडे गाड़े