अगणित बार गिरा जीवन में,
लेकिन पतित न हुआ कभी,
स्वतः, स्वयं का हाथ पकड़कर
की बाधाएं पार सभी,
अंतर्मन ने यूँ झिंझोड़ा,
पथ से कभी न भरमाया,
लक्ष्यभेद की ज्वाला धधके,
शीतल पड़ने दी न कभी,
है विश्वास स्वयं पर इतना,
गिरि की चोटी छू लूँगा,
अंतिम श्वास भी समर लड़ेगी,
होगी स्वयं पर विजय तभी।।
©कमल "किशोर"
#walkingalone स्वयं-सारथी