"इंतजार"
ठहर जाती होगी कभी कभी
आत्माएं भी किसी की किसी के इंतजार में!
और फिर भटकती रहती होंगी,
अनंत काल तक किसी श्मशान के सुनसान जगह पर,
जहां पर सुनाई देती हो हर आते हुए "देह" की आवाज!!
उन आत्माओं को मिलता होगा निमंत्रण फिर से,
नया जीवन शुरू करने का पर वह आत्माएं इंतजार में सिर्फ इंतजार में नकार देती हैं मना कर देती हैं उस प्रस्ताव को उस निमंत्रण को!!
इस बार वह आत्माएं खत्म कर देना चाहती हैं उस इंतजार को इसी जन्म भटकते भटकते!!
और अब जीना चाहती है बिना इंतजार के उसके साथ जिसके लिए त्याग दिया था मनुष्य का जीवन और स्वीकार किया भटकना शिव की तरह वियोग में!!
उस भटकती हुई आत्मा में अंश है हमारे नारायण शिव के और उस इंतजार में तपस्या है माता पार्वती की!!
"शमशान- मृत्यु पढ़ाता हूं मैं"
"प्रमिला ललित शुक्ला"
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©roshi
@PRAMILA LALIT SHUKLA @PRAMILA LALIT SHUKLA