नया सिलसिला शुरू होने में वक़्त लगता है ख़ुद को ख़ुद से रूबरू होने में वक्त लगता है
जागती आँखें ख़्वाबों से लबालब भरी हों तो लाख करवटें लीजिए सोने में वक़्त लगता है
ख़ूबसूरती बसानी पड़ती है ज़ेहन की ज़ेहन में प्रेम की सच्ची माला पिरोने में वक़्त लगता है
बस एक हार के बाद सब कुछ ख़त्म नहीं होता उम्मीद की ज़मीं बंजर होने में वक्त लगता है
मेरे हाथ में हो तो सबकी उदासियाँ राख कर दूँ मगर इंसान को देवता होने में वक़्त लगता है।
©Thakur Pramod Singh
#PhisaltaSamay