बहुत भींगा ली , तेरी यादों से रूह
आओ , इस बारिश में जिस्म भीगाते हैं ।
टहनियां भी ओढ ली हरी ओढ़नी ,
चलो ओढ़नी के बीच गुफ्तगू करते हैं ।
वो खिड़की गवाह है सदियों से ,
जिससे मेरी नयन राह तकती है तेरी।
फिसलने की डर से ठहर मत जाना
हर एक बूंद में तस्वीर होगी मेरी ।
वो पल ठहर जाए - हल्की बारिश, ठंडी हवाएं
भींगा तन - संग हम
दो कप चाय
और मस्त होंगे हम ।
©Annu Sinha
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