पिता की यादों में है वो ख़ामोश रहमत,
उनके लफ़्ज़ों में आज भी वफ़ा का पैग़ाम बाकी है।
हर मुश्किल घड़ी में वो हौसला बनकर आते हैं,
वो दुनिया से रुख़्सत हुए, पर उनका असर बाकी है।
वो चले गए, छोड़ गए ज़िंदगी की तालीम,
उनके नक्श-ए-राह पर हर कदम का निशां बाकी है।
जब भी टूटता हूँ सफर की ठोकरों में कहीं,
उठाने को आज भी उनका अरमां बाकी है।
पिता का साया आज भी है मेरे साथ यूं,
उनकी दुआओं का साया हर राह पे बाकी है।
चले गए वो फलक के सफर पर दूर कहीं,
पर उनकी मौजूदगी का एहसास हर सांस में बाकी है।
वो जुदा हुए, पर छोड़ गए अनमोल ख़ज़ाना,
यादों में बसा है महकता उनका गुलिस्तां बाकी है।
अब वो सितारा बनकर आसमां में रोशन हैं,
उनकी रौशनी से मेरी हर रात और सुबह बाकी है।
जैसे अंधेरों में चिराग़ की लौ जलती है,
वैसे ही उनकी यादों का उजाला हर लम्हा बाकी है।
इस फानी दुनिया से वो चले गए हैं भले,
मगर मेरे दिल में वो जिंदा हैं, उनका हर वो लम्हा बाकी है।
©नवनीत ठाकुर
#पिता का साया