हाँ अब पलायन रोकने की बात में करने लगा हूँ खुद शहर

"हाँ अब पलायन रोकने की बात में करने लगा हूँ खुद शहरों में रह कर, कुछ मीडिया, कुछ अखबारों के जरिये में भी सुर्खियों में छपने लगा हूँ हाँ अब शहरों में रह कर में भी पलायन रोकने की बाते करने लगा हूँ वो, हाँ वो ही जो मिट्टी के घर थे मेरे जाने के डर से वो भी थोड़ा सा बेबस थे वो घर आज मेरी खातिर तरसने लगे हैं, सुना है अब मेरे उन घरों में बाहर के लोग आकर बसने लगे हैं सोच कर के तो में आया था कि अपने माँ बाप अपने पुर्खों का ये पहाड़ ये लौ क्लास मेंटेलिटी छोड़ कर कहीं दूर शहर में जाऊंगा और वहां अपनी दुनिया अलग बसाउंगा मगर अफ़सोस के इस शहर का भी में हो न सका अपने रीत रिवाज में होने वाली खुशी को में इन शहरियों से में कह न सका, जो हमारे पाप थे हमारे श्राप थे वो केवल ककड़ी, मुंगरी की चोरी तक सीमित रह जाते थे और कहीं सच मे पाप हो न जाये इसलिए उस रात चोरी की ककड़ी का एक टुकड़ा उनके द्वारे भी रख आते थे अफसोस के जो ये हमारी सच्चाई थी ये केवल और केवल एक कहानी सी हो चले हैं वो हरे भरे से मेरे गाँव खाली हो चले है सुंदरियाल जी"

 हाँ अब पलायन रोकने की बात में करने लगा हूँ
खुद शहरों में रह कर, कुछ मीडिया, कुछ अखबारों के जरिये में भी सुर्खियों में छपने लगा हूँ
हाँ अब शहरों में रह कर में भी पलायन रोकने की बाते करने लगा हूँ
वो, हाँ वो ही जो मिट्टी के घर थे मेरे जाने के डर से वो भी थोड़ा सा बेबस थे
वो घर आज मेरी खातिर तरसने लगे हैं, सुना है अब मेरे उन घरों में बाहर के लोग आकर बसने लगे हैं
सोच कर के तो में आया था कि अपने माँ बाप अपने पुर्खों का ये पहाड़ ये लौ क्लास मेंटेलिटी छोड़ कर कहीं दूर शहर में जाऊंगा 
और वहां अपनी दुनिया अलग बसाउंगा
मगर अफ़सोस के इस शहर का भी में हो न सका 
अपने रीत रिवाज में होने वाली खुशी को में इन शहरियों से में कह न सका,
जो हमारे पाप थे हमारे श्राप थे वो केवल ककड़ी, मुंगरी की चोरी तक सीमित रह जाते थे
और कहीं सच मे पाप हो न जाये इसलिए उस रात चोरी की ककड़ी का एक टुकड़ा उनके द्वारे भी रख आते थे
अफसोस के जो ये हमारी सच्चाई थी ये केवल और केवल एक कहानी सी हो चले हैं
वो हरे भरे से मेरे गाँव खाली हो चले है
                                                         सुंदरियाल जी

हाँ अब पलायन रोकने की बात में करने लगा हूँ खुद शहरों में रह कर, कुछ मीडिया, कुछ अखबारों के जरिये में भी सुर्खियों में छपने लगा हूँ हाँ अब शहरों में रह कर में भी पलायन रोकने की बाते करने लगा हूँ वो, हाँ वो ही जो मिट्टी के घर थे मेरे जाने के डर से वो भी थोड़ा सा बेबस थे वो घर आज मेरी खातिर तरसने लगे हैं, सुना है अब मेरे उन घरों में बाहर के लोग आकर बसने लगे हैं सोच कर के तो में आया था कि अपने माँ बाप अपने पुर्खों का ये पहाड़ ये लौ क्लास मेंटेलिटी छोड़ कर कहीं दूर शहर में जाऊंगा और वहां अपनी दुनिया अलग बसाउंगा मगर अफ़सोस के इस शहर का भी में हो न सका अपने रीत रिवाज में होने वाली खुशी को में इन शहरियों से में कह न सका, जो हमारे पाप थे हमारे श्राप थे वो केवल ककड़ी, मुंगरी की चोरी तक सीमित रह जाते थे और कहीं सच मे पाप हो न जाये इसलिए उस रात चोरी की ककड़ी का एक टुकड़ा उनके द्वारे भी रख आते थे अफसोस के जो ये हमारी सच्चाई थी ये केवल और केवल एक कहानी सी हो चले हैं वो हरे भरे से मेरे गाँव खाली हो चले है सुंदरियाल जी

People who shared love close

More like this

Trending Topic