#OpenPoetry रोज तारो को नुमाइश में खलल पड़ता है | हिंदी शायरी

"#OpenPoetry रोज तारो को नुमाइश में खलल पड़ता है चांद पागल है जो अंधेरों में निकल पड़ता है आज उनकी याद आई है सांसों जरा आहीस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है"

 #OpenPoetry  रोज तारो को नुमाइश में खलल पड़ता है 
चांद पागल है जो अंधेरों में निकल पड़ता है 

आज उनकी याद आई है सांसों जरा आहीस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है

#OpenPoetry रोज तारो को नुमाइश में खलल पड़ता है चांद पागल है जो अंधेरों में निकल पड़ता है आज उनकी याद आई है सांसों जरा आहीस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है

आने से उनके आए बाहर

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