संकट आया , भिडो ना उससे मायुसी क्यू ये छायी हैं नह

"संकट आया , भिडो ना उससे मायुसी क्यू ये छायी हैं नही अकेले , लाखो हैं जो चुभे हैं पथ अकल आई हैं शांत शांत ओर मंद मंद क्यू किर किर जो तुम करते थे अभिमान नही था, शून्य तेज आगे से बोला करते थे नफ्रत हैं तुझे सबसे फिर भी दंड स्वयम को क्यो देता. शांत सही , पर तांडव भितर शितल हो भितर मेधा ! चल मान लिया , ले सब हैं लीचड सब हैं पापी , सब झुठे खुद को समझाले अवतारी क्या तेरे करम हैं कम फुटे ? पुण्य आतमा , तेरी साधना खुद से ज्यादा दूजो पर.... प्रेम भी ज्यादा , क्रोध भी ज्यादा दोनो ले अा कंधो पर दिलं , दिमाग का चहेरा दर्पण इतना तुझको समझा हैं छुपाले कितना नही छिपता फिर गाव मे होती चर्चा हैं.. शांत ही सही नहि जरुरी रोज रजामंद होना हैं सौम्यता रख तू भितर अपने अर्ध चांद खुश होना हैं काल काल को कोसना क्यू लिखा किया ही हैं अपना तेजकल्प सी बुद्धी से तू वर्तमान की कर रचना..... #सत्यसाधक ©@π!k€✓"

 संकट आया , भिडो ना उससे
मायुसी क्यू ये छायी हैं
नही अकेले , लाखो हैं जो
चुभे हैं पथ अकल आई हैं

शांत शांत ओर मंद मंद क्यू
किर किर जो तुम करते थे
अभिमान नही था, शून्य तेज
आगे से बोला करते थे

नफ्रत हैं तुझे सबसे फिर भी
दंड स्वयम को क्यो देता.
शांत सही , पर तांडव भितर 
शितल हो भितर मेधा !

चल मान लिया , ले सब हैं लीचड
सब हैं पापी , सब झुठे
खुद को समझाले अवतारी
क्या तेरे करम हैं कम फुटे ?

पुण्य आतमा , तेरी साधना
खुद से ज्यादा दूजो पर....
प्रेम भी ज्यादा , क्रोध भी ज्यादा
दोनो  ले अा कंधो पर

दिलं , दिमाग का चहेरा दर्पण
इतना तुझको समझा हैं
छुपाले कितना नही छिपता 
फिर गाव मे होती चर्चा हैं..

शांत ही सही नहि जरुरी
रोज रजामंद  होना हैं
 सौम्यता रख तू भितर अपने
अर्ध चांद खुश होना हैं

काल काल को कोसना क्यू
लिखा किया ही हैं अपना
तेजकल्प सी बुद्धी से तू
वर्तमान की कर रचना.....

#सत्यसाधक

©@π!k€✓

संकट आया , भिडो ना उससे मायुसी क्यू ये छायी हैं नही अकेले , लाखो हैं जो चुभे हैं पथ अकल आई हैं शांत शांत ओर मंद मंद क्यू किर किर जो तुम करते थे अभिमान नही था, शून्य तेज आगे से बोला करते थे नफ्रत हैं तुझे सबसे फिर भी दंड स्वयम को क्यो देता. शांत सही , पर तांडव भितर शितल हो भितर मेधा ! चल मान लिया , ले सब हैं लीचड सब हैं पापी , सब झुठे खुद को समझाले अवतारी क्या तेरे करम हैं कम फुटे ? पुण्य आतमा , तेरी साधना खुद से ज्यादा दूजो पर.... प्रेम भी ज्यादा , क्रोध भी ज्यादा दोनो ले अा कंधो पर दिलं , दिमाग का चहेरा दर्पण इतना तुझको समझा हैं छुपाले कितना नही छिपता फिर गाव मे होती चर्चा हैं.. शांत ही सही नहि जरुरी रोज रजामंद होना हैं सौम्यता रख तू भितर अपने अर्ध चांद खुश होना हैं काल काल को कोसना क्यू लिखा किया ही हैं अपना तेजकल्प सी बुद्धी से तू वर्तमान की कर रचना..... #सत्यसाधक ©@π!k€✓

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