मैं ज़मीं पे रहा रहा उम्र भर डूबता पर मिला मुझको | हिंदी Shayari

"मैं ज़मीं पे रहा रहा उम्र भर डूबता पर मिला मुझको को कोई किनारा नहीं, दिन फिरे तो कश्तियां, मौजे मझधार से निकल आ गयी पर सहारा नहीं।। _ कन्हैया ©Kanhaiya Kumar"

 मैं ज़मीं पे रहा रहा उम्र भर डूबता 
पर मिला मुझको को कोई किनारा नहीं,
दिन फिरे तो कश्तियां, मौजे मझधार से 
निकल आ गयी पर सहारा नहीं।।
_ कन्हैया

©Kanhaiya Kumar

मैं ज़मीं पे रहा रहा उम्र भर डूबता पर मिला मुझको को कोई किनारा नहीं, दिन फिरे तो कश्तियां, मौजे मझधार से निकल आ गयी पर सहारा नहीं।। _ कन्हैया ©Kanhaiya Kumar

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