घर की दहलीज लांघ कर आते हैं जब बाहर हम एक राह नई स

"घर की दहलीज लांघ कर आते हैं जब बाहर हम एक राह नई सी होती है होती है कुछ उम्मीदें भी मिलता है जब एक शिक्षक मुश्किल होती है पार सभी है धन्यवाद उन आदर्शों को जो प्रतिपल रहते साथ है घड़ियां हो चाहे खुशियों की लगती हो मंज़िल असंभव जब भी बस देखती हूं आप सब को मिलती है प्रेरणा रोज़ नई खिड़की से दिखता था जो जहां पहचान कराई आपने ही ना होते जो आप सब साथ मंज़िल रहती दूर कहीं इक ही है मेरी चाह यही अभिलाषा है उस राह चलूं विद्यार्थी की जो परिभाषा है.. ©simran Swarna"

 घर की दहलीज लांघ कर आते हैं जब बाहर हम
एक राह नई सी होती है
होती है कुछ उम्मीदें भी
मिलता है जब एक शिक्षक
मुश्किल होती है पार सभी
है धन्यवाद उन आदर्शों को
जो प्रतिपल रहते साथ है
घड़ियां हो चाहे खुशियों की
लगती हो मंज़िल असंभव जब भी
बस देखती हूं आप सब को
मिलती है प्रेरणा रोज़ नई
खिड़की से दिखता था जो जहां
पहचान कराई आपने ही
ना होते जो आप सब साथ
मंज़िल रहती दूर कहीं

इक ही है मेरी चाह यही अभिलाषा है
उस राह चलूं
विद्यार्थी की जो परिभाषा है..

©simran Swarna

घर की दहलीज लांघ कर आते हैं जब बाहर हम एक राह नई सी होती है होती है कुछ उम्मीदें भी मिलता है जब एक शिक्षक मुश्किल होती है पार सभी है धन्यवाद उन आदर्शों को जो प्रतिपल रहते साथ है घड़ियां हो चाहे खुशियों की लगती हो मंज़िल असंभव जब भी बस देखती हूं आप सब को मिलती है प्रेरणा रोज़ नई खिड़की से दिखता था जो जहां पहचान कराई आपने ही ना होते जो आप सब साथ मंज़िल रहती दूर कहीं इक ही है मेरी चाह यही अभिलाषा है उस राह चलूं विद्यार्थी की जो परिभाषा है.. ©simran Swarna

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