ख़ुशनुमा मौसम भी बेईमान लगता है !
महबूब से दूर रहना बहुत खटकता है !!
बेचैन ए दिल के ज़ज्बात बयां करूँ कैसे!
हर हिज्र की रात मुझे तड़पना पड़ता है!! (हिज्र - जुदाई की रात)
बस बेबस हो जाता हूँ तेरी याद में !
दर्द ए इश्क का प्याला मुझे गटकना पड़ता है !!
ख़्यालों की दुनियां में अक़्स तेरा देखता हूं!
कू-ए-दोस्त में मुझे भटकना पड़ता है!! (कू-ए-दोस्त - महबूब की गली)
ये जो ज़ाम ज़ाम छलका रहा हूं ये शौक नहीं है मेरा !
बेचैन -ए -मन की दवाई का सहारा लेना पड़ता है !!
हिज्र की रात
#Drops