जब कभी तुम्हें मेरी याद आए,
तब तुम मुझे ढूंढने आना मेरी उन कविताओं में,
जिसमें मैंने अपनी उलझनों का ज़िक्र किया था,
तुम ढूंढने आना मुझे मेरे बगीचे में,
जहां घंटों बैठकर मैंने तुम्हारा इंतजार किया था,
तुम ढूंढने आना मुझे उस ग़ज़ल में,
जिसके नज़्म और धुन मैं हमेशा गुनगुनाया करती थी,
तुम ढूंढने आना मुझे उसी झुमके की दुकान में,
जहां से वापस जाना मुझे अच्छा नहीं लगता था,
तुम ढूंढने आना मुझे मेरे शहर की गलियों में,
जहां शब होते ही शहर का हर एक कोना जगमगा उठता था,
तुम ढूंढने आना मुझे गंगा के किनारे कहीं,
क्योंकि मेरे अंदर का सुकून वहीं कहीं बसता था,
तुम ढूंढने आना मुझे इश्क के उन अफसानों में ,
जहां मैंने तुम्हारे लिए नज़्में लिखी थी,
बस देखना मैं तुम्हें वहीं कहीं मिलूंगी,
अपनी मसरूफ़ियत, चंद किताबें और अपनी एक कलम और डायरी के साथ।
©Ritika Roy
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