ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं | हिंदी Shayari

"ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं तब जा के कहीं इस दुनिया के अंदाज़ समझ में आए हैं हम में न मोहब्बत की गर्मी हम में न शराफ़त की नर्मी इंसान कहें क्यों सब हम को हम चलते फिरते साए हैं उम्मीद ने फिर करवट ली है बदले हैं फ़ज़ा के फिर तेवर अब देखिए क्या बरसाते हैं कुछ बादल घिर कर आए हैं हम दोस्त नहीं दुश्मन ही सही भाई न सही बेरी ही सही हमसाए का हक़ तो दो हम को हम कुछ भी न हो हमसाए हैं Punjabi_Amit ©words_of_heart_pa"

 ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं
तब जा के कहीं इस दुनिया के अंदाज़ समझ में आए हैं

हम में न मोहब्बत की गर्मी हम में न शराफ़त की नर्मी
इंसान कहें क्यों सब हम को हम चलते फिरते साए हैं

उम्मीद ने फिर करवट ली है बदले हैं फ़ज़ा के फिर तेवर
अब देखिए क्या बरसाते हैं कुछ बादल घिर कर आए हैं

हम दोस्त नहीं दुश्मन ही सही भाई न सही बेरी ही सही
हमसाए का हक़ तो दो हम को हम कुछ भी न हो हमसाए हैं

                  Punjabi_Amit

©words_of_heart_pa

ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं तब जा के कहीं इस दुनिया के अंदाज़ समझ में आए हैं हम में न मोहब्बत की गर्मी हम में न शराफ़त की नर्मी इंसान कहें क्यों सब हम को हम चलते फिरते साए हैं उम्मीद ने फिर करवट ली है बदले हैं फ़ज़ा के फिर तेवर अब देखिए क्या बरसाते हैं कुछ बादल घिर कर आए हैं हम दोस्त नहीं दुश्मन ही सही भाई न सही बेरी ही सही हमसाए का हक़ तो दो हम को हम कुछ भी न हो हमसाए हैं Punjabi_Amit ©words_of_heart_pa

ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं
तब जा के कहीं इस दुनिया के अंदाज़ समझ में आए हैं

हम में न मोहब्बत की गर्मी हम में न शराफ़त की नर्मी
इंसान कहें क्यों सब हम को हम चलते फिरते साए हैं

उम्मीद ने फिर करवट ली है बदले हैं फ़ज़ा के फिर तेवर
अब देखिए क्या बरसाते हैं कुछ बादल घिर कर आए हैं

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