सोचो ज़रा दर्द-ए-दिल का क्या करें सुबह की रंजिश से | हिंदी शायरी

"सोचो ज़रा दर्द-ए-दिल का क्या करें सुबह की रंजिश से शाम की अदावत तक ज़मीनी हक़ीक़त से जुनूनी सियासत तक बेनींद आँखों से बेचैन करवटों तक कराहती बिस्तर की सिलवटों तक ज़िस्म की कफ़स में ये रूह है उफ्फ यात्रा कितनी दुरूह है दर्द-ए-दिल का क्या करें सोचो ज़रा. ©malay_28"

 सोचो ज़रा
दर्द-ए-दिल का क्या करें
सुबह की रंजिश से शाम की अदावत तक
ज़मीनी हक़ीक़त से जुनूनी सियासत तक
बेनींद आँखों से बेचैन करवटों तक
कराहती बिस्तर की सिलवटों तक
ज़िस्म की कफ़स में ये रूह है
उफ्फ  यात्रा  कितनी दुरूह है
दर्द-ए-दिल का क्या करें
सोचो ज़रा.

©malay_28

सोचो ज़रा दर्द-ए-दिल का क्या करें सुबह की रंजिश से शाम की अदावत तक ज़मीनी हक़ीक़त से जुनूनी सियासत तक बेनींद आँखों से बेचैन करवटों तक कराहती बिस्तर की सिलवटों तक ज़िस्म की कफ़स में ये रूह है उफ्फ यात्रा कितनी दुरूह है दर्द-ए-दिल का क्या करें सोचो ज़रा. ©malay_28

#दर्द_ए_दिल

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