जाना कहाँ हैं न पता
खुद को ढूंढता मैं लापता
इस भीड़ में लब मेरे खामोश है
हूं कहीं गुम या अब भी मुझे होश है
मिले कुछ ऐसा जो जिंदगी की आस हो
सफर में ऐसे जहां खुद को खुद की तलाश हो
जाना कहाँ हैं न पता
खुद को ढूंढता मैं लापता
सब है यहीं फिर क्यों मन बैचैन है
है भरम या हकीकत जो निहारते नैन है
सवाल कितने जवाब होंगे भी या नहीं
खत्म होते जिंदगी के ख़्वाब होंगे भी या नहीं
जाना कहाँ हैं न पता
खुद को ढूंढता मैं लापता
©AK Singh
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