दिल कहता है रुठों को मनाना होगा
वो न झुकें तो ख़ुद झुक जाना होगा
दिल के मेहमाँ हैं वो तमाम नखरों के
उन्हें तो सर आँखों में बिठाना होगा
तमाम गिले शिकवे भाड़ में डालकर
ए दुश्मनों तुम्हें भी गले लगाना होगा
जमाना कहता रहे चाहे बुज़दिल मुझे
इसी राह मेरे कदमों में जमाना होगा
इस जमीं ने इक छत तक न दिया मुझे
अब तो हर दिल मकाँ बनाना होगा
मैं कब तक उठाकर चलूँ गुरुर अपना
इक दिन तो सब ख़ाक में जाना होगा
कोई बैठा है मेरे अन्दर स्वासों के लिये
बाद मोहलत तो वो भी रवाना होगा
ए ज़िंदगी क्या बार बार मिल पायेगी तू
हम गये तो फिर जाने कब आना होगा
©अज्ञात
#राह-ए-ज़िंदगी