बुलाए जब तुम्हे वो, तो चले जाना मुहब्बत से,
कही है जो ग़ज़ल उस पर सुना आना मुहब्बत से।
समा ऐसा बुलाने से नहीं आता यहाँ कोई,
बिना दावत कहीं भी मत चले जाना मुहब्बत से।
मुरव्वत है निवाला इश्क़ का जो है मिला तुमको,
कभी देखा फ़कीरों को मिले खाना मुहब्बत से।
नवाज़ा है तुम्हे उसने पयाम-ए-दावत-ए-मय से,
चलो फ़िर आज मयखाने चले जाना मुहब्बत से।
किसे मालूम के फ़िर कब बुलाए वो तुम्हे 'सोमेश',
मिलो जब उस को सीने से लगा लेना मुहब्बत से।
-- सोमेश
©Somesh Gour
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