मंसूख थे जो लोग मेरी ज़िंदगी के साथ, अक्सर वही मिले | हिंदी शायरी

"मंसूख थे जो लोग मेरी ज़िंदगी के साथ, अक्सर वही मिले है बड़ी बेरुखी के साथ। यूँ तो मैं हँस पड़ा हूँ तुम्हारे लिए मगर, कितने सितारे टूट पड़े एक हंसी के साथ। फुरसत मिले तो अपना गिरेबाँ भी देख ले, ऐ दोस्त यूँ न खेल मेरी बेबसी के साथ। मज़बूरियों की बात चली है तो मैं कहाँ, हमने पिया है ज़हर भी अक्सर खुशी के साथ। चेहरे बदल बदल के मुझे मिल रहे हैं लोग, इतना बुरा सलूक मेरी सादगी के साथ। ©The blankdotts"

 मंसूख थे जो लोग मेरी ज़िंदगी के साथ,
अक्सर वही मिले है बड़ी बेरुखी के साथ।
यूँ तो मैं हँस पड़ा हूँ तुम्हारे लिए मगर,
कितने सितारे टूट पड़े एक हंसी के साथ।
फुरसत मिले तो अपना गिरेबाँ भी देख ले,
ऐ दोस्त यूँ न खेल मेरी बेबसी के साथ।
मज़बूरियों की बात चली है तो मैं कहाँ,
हमने पिया है ज़हर भी अक्सर खुशी के साथ।
चेहरे बदल बदल के मुझे मिल रहे हैं लोग,
इतना बुरा सलूक मेरी सादगी के साथ।

©The blankdotts

मंसूख थे जो लोग मेरी ज़िंदगी के साथ, अक्सर वही मिले है बड़ी बेरुखी के साथ। यूँ तो मैं हँस पड़ा हूँ तुम्हारे लिए मगर, कितने सितारे टूट पड़े एक हंसी के साथ। फुरसत मिले तो अपना गिरेबाँ भी देख ले, ऐ दोस्त यूँ न खेल मेरी बेबसी के साथ। मज़बूरियों की बात चली है तो मैं कहाँ, हमने पिया है ज़हर भी अक्सर खुशी के साथ। चेहरे बदल बदल के मुझे मिल रहे हैं लोग, इतना बुरा सलूक मेरी सादगी के साथ। ©The blankdotts

मंसूख थे जो लोग मेरी ज़िंदगी के साथ,
अक्सर वही मिले है बड़ी बेरुखी के साथ।
यूँ तो मैं हँस पड़ा हूँ तुम्हारे लिए मगर,
कितने सितारे टूट पड़े एक हंसी के साथ।
फुरसत मिले तो अपना गिरेबाँ भी देख ले,
ऐ दोस्त यूँ न खेल मेरी बेबसी के साथ।
मज़बूरियों की बात चली है तो मैं कहाँ,
हमने पिया है ज़हर भी अक्सर खुशी के साथ।

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