क्या तुझ पर भी बैचेनी सी तारी है मुझ पर तो ये हिज | हिंदी शायरी

"क्या तुझ पर भी बैचेनी सी तारी है मुझ पर तो ये हिज्र बहोत भारी है , भागो-भागो दुनिया के पीछे तुम मुझको मुझमे रहने की बीमारी है , बेअदब की बात भी बड़े अदब से करते है कमजर्फो में किस हद तक मक्कारी है , इतराते हो जिस शोहरत पर इतना तुम मेने हरदम उसको ठोकर मारी है । ©Ronak_S_RAJPUT"

 क्या तुझ पर भी बैचेनी सी तारी है 
मुझ पर तो ये हिज्र बहोत भारी है ,

भागो-भागो दुनिया के पीछे तुम 
मुझको मुझमे रहने की बीमारी है ,

बेअदब की बात भी बड़े अदब से करते है 
कमजर्फो में किस हद तक मक्कारी है ,

इतराते हो जिस शोहरत पर इतना तुम 
मेने हरदम उसको ठोकर मारी है ।

©Ronak_S_RAJPUT

क्या तुझ पर भी बैचेनी सी तारी है मुझ पर तो ये हिज्र बहोत भारी है , भागो-भागो दुनिया के पीछे तुम मुझको मुझमे रहने की बीमारी है , बेअदब की बात भी बड़े अदब से करते है कमजर्फो में किस हद तक मक्कारी है , इतराते हो जिस शोहरत पर इतना तुम मेने हरदम उसको ठोकर मारी है । ©Ronak_S_RAJPUT

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