शिकायतें
कुछ कम हो गई हैं,
कुछ थम सी गई हैं,
कुछ शिकायतें जम सी गई हैं।
कुछ आहट सी हो गई हैं,
कुछ राहत सी हो गई हैं,
कुछ शिकायतें घबराहट सी हो गई हैं।
कुछ चुप चुप सी हैं,
कुछ तार तार हो गई हैं,
कुछ तो होते हुए भी बेकार हो गई हैं।
कुछ मौन हो गई हैं,
कुछ शोर हो गई हैं,
कुछ होते होते कुछ और हो गई हैं।
कुछ गुम हो गई हैं,
कुछ आम हो गई हैं,
कुछ शिकायतें बदनाम हो गई हैं।
कुछ उलझ गई हैं,
कुछ वीरान हो गई हैं,
कुछ सुलझते सुलझते सुनसान हो गई हैं।
#मोनिका वर्मा
©Monika verma
#शिकायतें