पीठ पीछे ही करते हैं, वो लोग मेरी बातें,, नज़रों स
"पीठ पीछे ही करते हैं, वो लोग मेरी बातें,,
नज़रों से गिरे लोग, नज़र नहीं मिलाते,,
बेहद वज़न है शायद, ईमान-ए-मेहनतों का,,
जो चल भी नहीं सकते, वो बौझ क्या उठाते।।"
पीठ पीछे ही करते हैं, वो लोग मेरी बातें,,
नज़रों से गिरे लोग, नज़र नहीं मिलाते,,
बेहद वज़न है शायद, ईमान-ए-मेहनतों का,,
जो चल भी नहीं सकते, वो बौझ क्या उठाते।।