जीत के जहान को भी मैंने ये बाज़ी हारी है। सिन्धु क | हिंदी शायरी

"जीत के जहान को भी मैंने ये बाज़ी हारी है। सिन्धु को सोख लेना, लक्ष्य मेरा जारी है ।।जीत कर जो बैठ जाते,उनकी सोच अधूरी है ।जीत के भी हार जाना सीखना जरूरी है।जीत के जो हार जाना राज कुछ और भी है तृष्णा कभी न पूर्ण होती हारना कुछ और भी है।। ©Rajendra Singh Rajak Ragi"

 जीत के जहान को भी मैंने ये बाज़ी हारी है। सिन्धु को सोख लेना, लक्ष्य मेरा जारी है ।।जीत कर जो बैठ जाते,उनकी सोच अधूरी है ।जीत के भी हार जाना सीखना जरूरी है।जीत के जो हार जाना राज कुछ और भी है तृष्णा कभी न पूर्ण होती हारना कुछ और भी है।।

©Rajendra Singh Rajak Ragi

जीत के जहान को भी मैंने ये बाज़ी हारी है। सिन्धु को सोख लेना, लक्ष्य मेरा जारी है ।।जीत कर जो बैठ जाते,उनकी सोच अधूरी है ।जीत के भी हार जाना सीखना जरूरी है।जीत के जो हार जाना राज कुछ और भी है तृष्णा कभी न पूर्ण होती हारना कुछ और भी है।। ©Rajendra Singh Rajak Ragi

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