जीत के जहान को भी मैंने ये बाज़ी हारी है। सिन्धु को सोख लेना, लक्ष्य मेरा जारी है ।।जीत कर जो बैठ जाते,उनकी सोच अधूरी है ।जीत के भी हार जाना सीखना जरूरी है।जीत के जो हार जाना राज कुछ और भी है तृष्णा कभी न पूर्ण होती हारना कुछ और भी है।।
©Rajendra Singh Rajak Ragi