अधरों पर मोती हैं
रोम-रोम में वह चांदनी
एक मुस्कान भी होती है
तेरा साथ दूबों पर
बिना किसी पर्दे के
इन कदमों का चलना है
तुझे देखना मानों
बहुत दिनों बाद
बारिश की बूंदों
शरीर से लिपटना है ,
तुझे सुनना मानों
उमस भरी गर्मी
और हौले से हवाओं
का मेरी रूह को छू जाना
और यह पल ..
यह तो बस इन
आँखों की गहराई
और काजल की पंक्तियाँ
जो रची-बसी हैं
तेरी आँखों में..
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रुचि स्मृति
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