White एक बार और उलझना है तुमसे, बहुत कुछ सुलझाने | हिंदी कविता

"White एक बार और उलझना है तुमसे, बहुत कुछ सुलझाने के लिए, वो बातें जो रह गईं अधूरी, फिर से उन्हें जताने के लिए। आँखों में छुपे सवालों को, शब्दों में बुनने का मन है, तेरे ख़ामोश लफ़्ज़ों को, फिर से सुनने का मन है। तेरी वो उलझी मुस्कानें, जिनमें कुछ दर्द छिपा हुआ है, उनमें छिपी कहानी को, फिर से आजमाने का मन है। कभी बहस, कभी इकरार, कभी चुपचाप बीते पल, उन्हीं लम्हों को फिर से छूने, फिर से तुझे पाने का मन है। उलझन में ही शायद सुलझे, वो गांठें जो दिल में हैं, इस बार उलझेंगे दोनों, सिर्फ सुलझाने के लिए। ©MOHNISH RANJAN"

 White एक बार और उलझना है तुमसे,  
बहुत कुछ सुलझाने के लिए,  
वो बातें जो रह गईं अधूरी,  
फिर से उन्हें जताने के लिए।  

आँखों में छुपे सवालों को,  
शब्दों में बुनने का मन है,  
तेरे ख़ामोश लफ़्ज़ों को,  
फिर से सुनने का मन है।  

तेरी वो उलझी मुस्कानें,  
जिनमें कुछ दर्द छिपा हुआ है,  
उनमें छिपी कहानी को,  
फिर से आजमाने का मन है।  

कभी बहस, कभी इकरार,  
कभी चुपचाप बीते पल,  
उन्हीं लम्हों को फिर से छूने,  
फिर से तुझे पाने का मन है।  

उलझन में ही शायद सुलझे,  
वो गांठें जो दिल में हैं,  
इस बार उलझेंगे दोनों,  
सिर्फ सुलझाने के लिए।

©MOHNISH RANJAN

White एक बार और उलझना है तुमसे, बहुत कुछ सुलझाने के लिए, वो बातें जो रह गईं अधूरी, फिर से उन्हें जताने के लिए। आँखों में छुपे सवालों को, शब्दों में बुनने का मन है, तेरे ख़ामोश लफ़्ज़ों को, फिर से सुनने का मन है। तेरी वो उलझी मुस्कानें, जिनमें कुछ दर्द छिपा हुआ है, उनमें छिपी कहानी को, फिर से आजमाने का मन है। कभी बहस, कभी इकरार, कभी चुपचाप बीते पल, उन्हीं लम्हों को फिर से छूने, फिर से तुझे पाने का मन है। उलझन में ही शायद सुलझे, वो गांठें जो दिल में हैं, इस बार उलझेंगे दोनों, सिर्फ सुलझाने के लिए। ©MOHNISH RANJAN

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