जहर भरा है आज फिज़ाओं में
सांस केसे लूं।।
पानी बन चुका खून जवानी में
यहां जिंदा में केसे रहूं।।
आज दो गज मुद्दत से मिल रही
रहबर..…
रहने को नहीं मकान ना ही घर
गुजर रहा है करवा लाशों का .. रोज़ ..
क्यूं तुझमें कोई उत्तेजना नहीं।।
सांस पे सांस ले रहा वह खुद को बचाने को
तू देख रहा तमशा
उत्सुक है थाली बजाने को ..
तेरे नाकारे पन ने झोक दिया चमन
तूने खुद को आजमाने को ।।
ये आवामे हिंदुस्तान है
मदारी को जल्दी पहचान लेती है
ये याद रखना।।
- रुद्र भिलाला
©Lokesh Bhilala
ज़िन्दगी_के_लिए_लड़ना_होगा
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