सौंदर्य (दोहे) काल्पनिक
देखा जो सौंदर्य है, छाने लगा खुमार।
जब वो आयी सामने, मानो चढ़ा बुखार।।
क्या बखान उसका करूँ, दिखती थी मगरूर।
जो सौंदर्य दिखा मुझे, तब जाना अतिक्रूर।।
वाणी उसकी थी जहर, नैनों में अंगार।
हाथों में नख थे बड़े, करती वो चीत्कार।।
उसको पकड़े जो मिले, करती अत्याचार।
देखा मैंने जब उसे, ऐसे हुआ फरार।।
पीछे पड़ी चुढैल हो, करने मुझ पर वार।
भागा-भागा मैं फिरूँ, दिखे नहीं उपचार।।
नींद खुली जब भोर में, आया फिर तब होश।
सपना था जाना तभी, आया मुझको जोश।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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सौंदर्य (दोहे) काल्पनिक
देखा जो सौंदर्य है, छाने लगा खुमार।
जब वो आयी सामने, मानो चढ़ा बुखार।।
क्या बखान उसका करूँ, दिखती थी मगरूर।