White पृथ्वी पुकार रही है और कह रही है करुण व्यथा। | हिंदी कविता Video

"White पृथ्वी पुकार रही है और कह रही है करुण व्यथा। घने सघन वनों से आच्छादित थी युगों युगों से हरी भरी थी। पर आज जब अपने आपको निहारती हूं तो, पाती हूं कि मेरी गोद में पलने वाली सर्वाधिक बुद्धिमान मानवजाति ही दिन प्रतिदिन मेरा क्षरण कर रही है जो हरे भरे वृक्ष मेरा श्रंगार करते हैं। वे निरंतर कट रहें है मानवीय हस्तक्षेप के फलस्वरूप। तत्पश्चात फूट पड़ती है मेरी क्रोधाग्नि कभी ज्वालामुखी के रूप में तो कभी विनाशकारी बाढ़ बनकर। मैं फिर भी क्षमा कर दूंगी। अगर लौटा दो मुझको मेरी हरियाली। और मेरा प्रदूषण रहित वातावरण। मैं सुरक्षित रहूंगी तो ही जीवन रहेगा। ©Shiv Shilpi "

White पृथ्वी पुकार रही है और कह रही है करुण व्यथा। घने सघन वनों से आच्छादित थी युगों युगों से हरी भरी थी। पर आज जब अपने आपको निहारती हूं तो, पाती हूं कि मेरी गोद में पलने वाली सर्वाधिक बुद्धिमान मानवजाति ही दिन प्रतिदिन मेरा क्षरण कर रही है जो हरे भरे वृक्ष मेरा श्रंगार करते हैं। वे निरंतर कट रहें है मानवीय हस्तक्षेप के फलस्वरूप। तत्पश्चात फूट पड़ती है मेरी क्रोधाग्नि कभी ज्वालामुखी के रूप में तो कभी विनाशकारी बाढ़ बनकर। मैं फिर भी क्षमा कर दूंगी। अगर लौटा दो मुझको मेरी हरियाली। और मेरा प्रदूषण रहित वातावरण। मैं सुरक्षित रहूंगी तो ही जीवन रहेगा। ©Shiv Shilpi

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