सोचती हूँ, समेट दूँ खुदको, पर तम्हारी बाहों से बेह | हिंदी शायरी

"सोचती हूँ, समेट दूँ खुदको, पर तम्हारी बाहों से बेहतर कोई जगह़ ही नहीं है... ©Adhoore_Alfaaz"

 सोचती हूँ, समेट दूँ खुदको,
पर तम्हारी बाहों से बेहतर कोई जगह़ ही नहीं है...

©Adhoore_Alfaaz

सोचती हूँ, समेट दूँ खुदको, पर तम्हारी बाहों से बेहतर कोई जगह़ ही नहीं है... ©Adhoore_Alfaaz

#missingyou

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