मां के आंचल में पले,
मां की उंगली पकड़ कर चले।
मां ने दुनिया दिखाई,
मां ने ही तो बोली सिखाइए !
मां ने हमें झूला झुलाया ,
मां ने ही हमें निवाला खिलाया !
मां तो है जिसने हमें पढ़ाया ,
मां ने ही हमें आगे बढ़ाया ।
मां का कर्ज है इतना,
गगन में तारे जितना ।
नहीं मांगती कर्ज लालन-पालन का,
तभी तो कहीं लाती है वह मां !
©Ashok Ugharejiya
क्या है मां ?
मां की कविता
अशोक उघरेजिया
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